बारसूर में विशाल गणेश की प्रतिमा के पास स्थित है एक मंदिर जिसे मामा-भांजा मंदिर कहते हैं। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है । यह मंदिर मध्यप्रदेश के खजुराहों मंदिर के समकालीन है यानि इस मंदिर का निर्माण ग्यारहवीं शताब्दी में हुआ है । एक जनश्रुति के अनुसार नागवंश के द्वारा राज्य की स्थापना के पूर्व संभवतः गंगवशों के किसी राजा ने नगर की स्थापना की और मंदिरों तथा तालाबों का निर्माण किया। कहा जाता है कि गंगवंश के कार्यकाल में कोई राजा बुद्धिमान था। उसने ओड़िसा देश से विश्वकर्मा को बुलवाकर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। उस मंदिर की कीर्ति दूर-दूर तक फैली। मंदिर की भव्यता को देखकर राजा ने अपने ही भांजे से युद्ध किया। भांजे ने तलवार से अपने मामा अर्थात् राजा का सिर काटकर मंदिर में ही चुनवा दिया। तबसे इस मंदिर को लोग मामा-भाचा या मामा-भांजा मंदिर कहने लगे।
कथाएं प्रचलित है इस मंदिर को क्यों मामा-भांजा कहते हैं?
एक जनश्रुति के अनुसार ओड़िसा के गंगवंशीय राजाओं ने नलवंश के समाप्ति के बाद बस्तर के एक विशाल भू-भाग में राज्य किया। बस्तर में नलवंश के पतन तथा नागवंश के बीच लगभग दो सौ वर्ष का अंधकारयुग का उल्लेख इतिहासकारों ने किया है। गंगवंश का बस्तर में शासन करने की जानकारी प्राप्त नहीं होती।
कहा जाता है कि गंगवंश के राजा का एक भांजा भी था, जो राजा के राज्य संचालन में सहयोग करता था। दूर-दूर तक मामा-भांजा की जोड़ी प्रसिद्ध थी। एक बार राज्य के विस्तार तथा धार्मिक भावना के प्रति रूचि जागृत करने के उद्धेश्य से भांजे ने उत्कल से शिल्पियों को बुलाकर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाना प्रारंभ किया। इस बात की जानकारी अपने मामा को देने की आवश्यकता नहीं समझी। कहा जाता है कि मामा का भांजा कला प्रेमी था।
राजा को इस बात की जानकारी मिली तो वह बिफर पड़ा। निर्माणाधीन स्थल पर मंदिर की भव्यता और सुंदरता देख कर मंत्रमुग्ध हो गया। इस बात पर राजा अपने भांजे से ईष्या करने लगा। उसे लगा कि यदि उनके राज्य में भांजा का इस तरह हस्तक्षेप होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब उनकी सत्ता पर भी भांजे की नजर पड़ जाए। राजा ने भांजे को बुलाकर आरोपित करते हुए उसे प्रताड़ित करने लगा। भांजे को यह बात नागवार गुजरी।
भांजे ने अवसर देखकर एक दिन आवेश में मामा का सिर कलम कर दिया।
हत्या करने के बाद भांजे को काफी पछतावा हुआ। उसका उद्धेश्य कभी भी मामा को नीचा दिखाना अथवा राज्य पर अधिकार करना नहीं था। वह अपने मामा से बहुत प्यार करता था किन्तु आवेशवश उसने मामा की हत्या कर दी। भांजे ने उस मंदिर में मामा के चेहरे की आकृति बना कर शिखर पर स्थापित किया। कहा जाता है कि मामा की स्मृति में भांजे ने मंदिर का निर्माण करवाया तथा कालान्तर में भांजे की मृत्यु के पश्चात भांजे के चेहरे की आकृति मंदिर पर स्थपित किया गया।
बेजोड़ कला का नमूना
यह मंदिर कला की दृष्टि से उत्कृष्ट है तथा उत्कल शैली में निर्मित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है तथा यह मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और मंदिर के शिखर में मामा और भांजा की पत्थर की मूर्तियां बनाई गई है।
एक अन्य जनश्रुति के अनुसार बारसूर में किसी गंगवंशीय राजा का राज्य था। हालाकि कुछ इतिहासकार इसे नहीं मानते। उनका मानना था नलवंश के पश्चात् छिंदक नागवंशकाल के राजाओं के कार्यकाल का इतिहास के पन्नों में उल्लेख है किन्तु गंगवंश के राजाओं की जानकारी स्पष्ट नहीं है। मंदिर के शिखर के पूर्वी भाग में अर्धकमलपुष्प आकृति के मध्य मानवमुखाकृति निर्मित है।
कैसे पहुँचे इस मंदिर तक
गीदम से 20 किमी की दूरी पर यह दंतेवाड़ा जिले के बारसूर में स्थित है। यह वर्तमान में अनेक दर्शनीय स्थलों में से एक हैं । जो पर्यटक बस्तर के इतिहास और कला संस्कृति में दिलचस्पी रखते हैं वे यहाँ अवश्य आते है।
बारसूर में ही बत्तीसा मंदिर और विशालकाय भगवान गणेश की प्रतिमा है जो एक ही पत्थर पर तराशी गई है।
बारसूर का शिव मंदिर मामा-भांजा के नाम पर
6/08/2025
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