गाँधी जी ने जब 1920 में असहयोग आन्दोलन चलाया तो देश में हर वर्ग
के लोगों ने उसमे हिस्सा लिया , अग्रेज सरकार इस आन्दोलन को दबाने की हर संभव
कोशिश करने लगी /
एसे ही दमनकारी कार्य करते हुए ब्रिटिश पुलिस ने एक 15 वर्ष के बच्चे को लेकर कोर्ट में पेश किया जिसने असहयोग आन्दोलन के एक जुलुस में हिस्सा
लिया था/ कोर्ट में मजिस्ट्रेट ने बच्चे से
पूछा,
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चंद्रशेखर आज़ाद (Photo-Google) |
तुम्हारा नाम क्या है ?
“ आज़ाद” बच्चे ने तपाक से जवाब दिया
पिता का नाम ? “स्वतंत्रता”!
घर कहाँ है ? मजिस्ट्रेट ने अगला प्रश्न किया
“ जेलखाना”
वह बच्चा और कोई नही चन्द्र
शेखर आज़ाद था/
इस पर बच्चे को मजिस्ट्रेट ने 15 कोड़े मारने की सजा दी/ और आजाद ने सहजता से कोड़े खाए , हर प्रहार पर आजाद ने अंग्रेज विरोधी नारे लगाये !
चन्द्र शेखर आजाद एक सच्चे देश भक्त क्रन्तिकारी थे / उन्होंने भारत
देश के लिए अपने प्राणों का न्योछावर कर दिया /
आइये बात करते है उनके जीवन से जुडी महत्वपूर्ण बातो को /
आज़ाद का
असली नाम चन्द्र शेखर तिवारी था उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ
जिले के भवरा गाँव में हुआ और संस्कृत पाठशाला में उनकी शिक्षा हुई / पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का नाम
जगरानी देवी था / वे संस्कृत की पढाई करने के लिए बनारस गए हुए थे / और गांधीजी के
आव्हान पर उन्होंने पढाई छोड़ दी और असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े / और देश की आज़ादी
के लिए वे अग्रेजो से लोहा लेने लगे/
बिस्मिल से मुलाक़ात :-
काकोरी रेल डकैती :-
पहली कार्यवाही 9 अगस्त 1925 को अंजाम दिया गया
/ जिसमे क्रांतिकारियों ने शाहजहाँ पुर से लखनऊ जाने वाली ट्रेन को लुटने की योजना
बनाई / उद्येश था - क्रन्तिकारी गतिविधियों
के लिए फण्ड इक्कठा करना / आजाद बिस्मिल और अन्य सहयोगियों के साथ एन. 8
डाउन ट्रेन पर चड़े और निर्धारित जगह पर
क्रांतिकारियों ने चेन खिंच कर ट्रेन रोक दी तथा गार्ड के पास से 8000 रूपये लूट
लिए / इस बीच रेलवे सुरक्षा गार्ड और क्रातिकारियों के बीच जम कर गोली बारी भी हुई
जिसमे एक मुसाफिर की मौत हो गयी / अग्रेज सरकार ने इसे लूट और हत्या का मामला
बनाया तथा इसमें शामिल क्रांतिकारियों की सरगर्मी से तलाश शुरू कर दी / रामप्रसाद
बिस्मिल , अशफाक उल्ला खान , ठाकुर रोशन सिंह , राजेद्र लहिरी पकडे गए जिन्हें बाद
में फांसी की सजा दी गयी / और आजाद अपने अन्य साथी के साथ कानपूर भाग आ गए / ट्रेन
डकैती की यही घटना काकोरी रेल डकैती के नाम से भारतीय इतिहास में दर्ज है /
लाहौर षडयंत्र:-
चन्द्र शेखर आजाद (फोटो- Google ) |
17 दिसम्बर 19 28 को जेम्स की हत्या करने के इरादे से निकले मगर
पहचान करने में चुक हुई और उन्होंने उप पुलिस अधीक्षक जॉन पी. सांडर्स की हत्या कर
दी/ इतिहास में यह लाहोर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है /
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इस केस में
भगत सिंह व उनके साथियों को दोषी करार दिया गया , पुलिस उनकी तलाश में थी / इसके
बाद असेम्बली में बम फेकना और गिरफ्तारी देना था , इस कार्य के लिए भगत सिंह, सुखदेव
व राजगुरु को चुना गया , इस की योजना भी आजाद ने बनाई थी / इस प्रकार वे अंग्रेजो को
भारत से निकलने के लिए अनेक योजनायें बनाते गए और सफल होते गए / चन्द्र शेखर आजाद अंग्रेजों
के लिए खौफ थे , सरकार किसी भी कीमत पर आजाद को जिन्दा या
मुर्दा पकड़ना चाहती थी तथा आज़ाद पर उस ज़माने
में 30,000 का इनाम रखा गया था / सभी
चोटी के क्रन्तिकारी जेल में बंद थे जिनमे भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु भी शामिल थे
/ लालाजी के हत्या का बदला लिया जाना इतिहास में लाहौर षड़यंत्र के नाम से जाना जाता है /
अखिरी वक्त :-
इस बीच, सीतापुर जेल में चंद्रशेखर आजाद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिले , उनकी
सलाह पर आजाद सुबह तडके 27 फरवरी 1931 को जवाहर लाल नेहरु से मिलने उनके निवास आनंद भवन
इलाहबाद पहुचे / ताकि नेहरुजी गाँधीजी से मिलकर गाँधी-इरविन समझौते पर कोई हल निकल
सके /
मगर यह वार्ता असफल हो गयी ,उसी सुबह 9:30 बजे अपने सहयोगी के साथ इलाहाबाद के
अल्फ्रेड पार्क( आज चंद्रशेखर आज़ाद पार्क है ) में चर्चा कर रहे थे/ तभी
अचानक , डिप्टी पुलिस अधीक्षक बिशेश्वर सिंह और एस एस पी (सी आई डी ) नौट बॉलर वहां आ गए
, पुलिस टुकड़ी और आजाद के बीच लम्बी गोली बारी हुई / इस बीच आजाद ने कवर फयीरिंग
करते हुए सुखदेव राज को बचा कर बहार भेजने में कामयाब हो गए मगर उनके दायें जांघ पर
गोली लगी जिसके कारण वे चलने में असमर्थ हो गए / बावजूद इसके वे पुलिस को लम्बे समय
तो रोक पाने में कामयाब थे / उनके पास
गोलियां ख़त्म हो चुकी थी और वे घायल थे / उन्होंने सोचा जीते जी वो पुलिस के
हाथ नही आएंगे आजाद ही जिये आज़ाद ही मरेंगे / और उनके पास आखरी गोली बची थी , अपने
आपको गोली मारकर उन्होंने अपना जीवन वहीँ समाप्त कर दिया और अपने वचन पर कायम रहे –
आज़ाद ही जिये आजाद ही मरे ! जीते जी पुलिस उन्हें कभी पकड नही पाई /
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आजाद पार्क (फोटो-गूगल) |
आजाद सोशलिस्ट विचार धारा के समर्थक थे /उन्होंने अपना
पूरा जीवन इसी विचार धारा में रहते हुए बिताया / वे आज
भी युवाओं के प्रेरणा स्रोत है ! 23 जुलाई को उनके जन्म दिवस पर कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें सदैव नमन करता है /
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CHANDRA SHEKHAR AZAD