ट्राईबल फूड के अगर आप शौकिन हैं तो उन्हें एक बार बस्तर जरूर आना चाहिए! क्योंकि यहाँ एक से बड़कर एक बस्तरिया भोजन का स्वाद आपको मिलेगा। यहां मांसाहारियों के लिए एक खास प्रकार का डिश आपको गांवों में मिलेगी । जिसे तैयार करने के लिए चिकिन, बकरा इत्यादि के मांस की जरूरत नहीं बल्कि केवल चीटीं से ही काम लिया जाता है । यह है लाल चींटी की चटनी जिसे स्थानीय भाषा में चापड़ा चींटी कहा जाता है। चापड़ा का शब्दिक अर्थ होता है पत्तों का झोला । इसी चटनी का स्वाद चखने के लिए विश्व के नम्बर वन ब्रिटिश शैफ गार्डन जेम्स रामसे जुनिअर बस्तर आए थे और चापड़ा से बनी चटनी को उन्होंने अपने राष्ट्रीय मेन्यु में शामिल किया है । वे 10 दिनों तक एक गांव में इसकी रेसिपी सीखने में गुजारी और फिर लौट गए। इस वादे के साथ कि इसकी रेसिपी अपने राष्ट्रीय मेन्यु में शामिल करेंगें।
कौन है गार्डन रामसे
गार्डन जेम्स को 16 बार मिशेलिन स्टार अवार्ड मिल चुका है । कुकिंग की दुनियां में यह एक सबसे बड़ा अवार्ड माना जाता है। मिशेलिन एक फुड गाईड है जिसके द्वारा यह पुरस्कार अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष दिया जाता है। उम्मीद है चापड़ा चीटीं का महत्ता आप समझ ही गए होंगें। बस्तर में गांव वाले सदियों से खाते आ रहें रहें । हाल ही में बस्तर फूड पार्क के उद्द्याटन पर अथितियों ने भी इस चटनी का स्वाद लिया और खूब तारीफ की।
पौष्टिक गुण
अब आईए बात करते है इसके पौष्टिक गुणों की । बाजारांे में 10 से 15 रूपये पत्ते से बने प्लेट में यह बस्तर में आसानी से मिल जाता है। आमतौर पर साप्ताहिक हॉट में इसकी बहुतायत बिक्री होती है । तथा स्वाद में तीखा होता है। यह आमतौर पर ठंड तथा गर्मियों में ज्यादा मिलता है।
वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि चापड़ा चींटी यानि रेड एंट्स में फार्मिक एसिड होता है जो कई एन्टी बैक्टिरिया से लड़ने की ताकत हमारे पेट को देता है। इसके अलावा इसमें प्रोटिन,कैलश्यिम, जिंक की प्रचुरता होती है जो हमारे शरीर के प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाती है। और बस्तर के आदिवासी इसे अपने नियमित आहार में ग्रहण करते हैं ।
कैसे तैयार होता है बस्तर का चापड़ा चटनी (chapda chutney recipe)
चटनी बनाने के लिए चापड़ा को सीधा चापड़ा गुड़ा यानि इसके घर से इक्कठ्ठा करके उसमें उसके अंडो को मिलाकर चटनी बनाई जाती है।जिसे बांस की टहनियों के जरिए पहले ही एकत्र किया जाता है।
बस्तर का चापड़ा चटनी को तैयार करने के लिए चापड़ा को पहले घने जंगलों से एकत्र किया जाता है और फिर चापड़ा की चीटीं के साथ उसके अंडे को भी रखा जाता है । हम बता दें कि इसके अंडे में में प्रचुरमात्रा में फार्मिक एसिड होता है जो इसके स्वाद को खट्टा, तीखा बनाता है। और इसमें धनिया, अदरक व लसुन को मिलाकर सिल बट्टा में पीसा जाता है। जरूरत के अनुसार इसमें कुछ गुड़ या शक्कर भी लोग मिलाते हैं फिर इसे चांवल के साथ में परोसा जाता है । आदिवासी इसे चटनी से मौसमी बिमारियों के अलावा बुखार, पीलिया का भी इलाज करते हैं।
कहां मिलता है चापड़ा ?
जगलों में साल वृक्ष के पेड़ों के पत्तों में यह चींटी अपना अंडा देती है और यह झंड के रूप में जंगलों में पायी जाती है। साल की पत्तियों में चींटी अपने लार से पत्तों को आपस में चिपका कर अपना घर बनाती है जिसे चापड़ा गुड़ा यानि चापड़ा का घर कहते हैं। कहते हैं अगर यह चींटी आपको लगातार दो चार बार काट ले तो बुखार उतर जाता है और बुखार न भी हो तो उसे बुखार नहीं चढ़ता । कारण है यह बुखार फैलाने वाले बैक्टिरिया या वायरस को चुस लेती है। जो लोग चटनी खाने से परहेज करते हैं उसे इस चींटी से कटवाना ही उनके बिमारियों का अंत कर सकता है।
चापड़ा चटनी chapda chutney
9/04/2021
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