दन्तेश्वरी मंदिर, जगदलपुर
जगदलपुर में जुलाई के महिने से बस्तर दशहरा की शुरूआत हो जाती है और फिर एक के बाद एक रस्मों को लेकर बस्तर दशहरा पूरे 75 दिनों तक चलता रहता है। मै दरअसल बस्तर दशहरा से जुड़ी वो तमाम भवनों के बारे में बात कर रहा हूँ जो एतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तो हैं ही साथ ही इन जगहों पर अहम रस्में दशहरा के दौरान निभाई जाती हैं।
जैसे जिया ढेरा और निशा जात्रा गुढ़ी उम्मीद है इसके बारे में आपने मेरे पिछले ब्लॉग में पढ़ा होगा।
क्लिक कीजिए :- निशा जात्रा गुढ़ी और जिया डेरा
ऐसे ही एक खास मंदिर है दन्तेश्वरी मंदिर जो बस्तर दशहरे का केन्द्र हैं जानते हैं क्या है इस मंदिर का इतिहास और क्यों है इसका महत्व
निर्माण
अंचल के कलमकार रूद्रनारायण पानीग्राही ने अपने किताब विरासत जगदलपुर में लिखा है कि इस मंदिर का निर्माण राजा रूद्रप्रताप देव ने 1890 करवाया । मंदिर के अंदर जाने से आपको माई दंतेष्वरी की प्रतिमा और सिंह मूर्ति दिखाई देगी जो सफेद संगमरमर से बनी है। ऐसा कहते है इस मंदिर का निर्माण उड़िसा के कारीगरों द्वारा किया गया था।
तीन खंडों में है मंदिर
मंदिर के तीन खण्डों में बना है। प्रथम खण्ड पानी, पूजन सामग्री आदि के लिए उपयोग में लाया जाता है। द्वितीय खंड के मध्य में मांई दन्तेश्वरी की प्रतिमा स्थापित है। तीसरे खंड में विष्णु जी की मूर्ति स्थापित है। गर्भगृह के ठीक सामने सभा मण्डप है जहां लकड़ियों के पुराने स्तंभ मौजूद हैं, उन स्तंभों में सुंदर कारीगरी की हुई है।
चालुक्यों की देवी है माई दन्तेश्वरी
दन्तेश्वरी चालुक्य राजवंश की कुलदेवी मानी जाती हैं। विरासत जगदलपुर में दी गई जानकारियों के मुताबिक दंतेष्वरी देवी वारंगल होते हुए
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बस्तर अंचल में राजाओं के साथ आकर राजदेवी और बाद में जनदेवी या लोकदेवी कहलाईं, इसीलिए बस्तर के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी बड़ी श्रद्धा से दंतेष्वरी देवी की पूजा अर्चना होती है।
मूल मंदिर है दंतेवाड़ा में
दन्तेश्वरी का मूल मंदिर छत्तीसगढ़ के दन्तेवाड़ा जिला मुख्यालय में है। दन्तेवाड़ा एक शक्ति स्थल के रूप में विख्यात है, और दन्तेश्वरी देवी को, दुर्गा जी का प्रतिरूप मानकर पूजा की जाती है। देवी मां के मुख मण्डल में अपूर्व तेजस्विता विद्यमान है,
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दन्तेवाड़ा में मूल मंदिर के स्थापना के बाद राजधानियां बदलती रही और राजधानियों में राजपरिवार की कुलदेवी दन्तेश्वरी देवी की स्थापना भी होती रही। इसी संदर्भ में जगदलपुर राजधानी बनने के बाद राजमहल परिसर में दक्षिण द्वार पर राजा भैरमदेव के काल में मंदिर का निर्माण 1890 में किया गया था।