अर्थ चिंतक, राजनितिक विचारक, शिक्षाविद्,संगठन शास्त्री,वक्ता लेखक पत्रकार इत्यादि के रूप में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम गर्व से लिया जाता है। कुछ दिन पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के चिंतक दीनदयाल उपाध्याय के विषय में जानने का अवसर मिला। मै उनका आख्यान स्वयंसेवक संघ की किसी किताब में पढ़ रहा था
जानकारी के मुताबिक 22 से 25 अप्रेल 1965 को मुम्बई में दिए गए चार आख्यानों में एकात्म मानव वाद की व्याख्या बड़े ही दिलचस्प ढंग से समझाई गई थी और ये आख्यान पंडित दीनदायाल उपाध्याय ने दिया था।
इसे हम बड़े ही सरल ढंग से समझ सकते हैं । इसे सर्पिलाकार मंण्डलाकृति द्वारा स्पष्ट की जा सकती है। जिसमें एक व्यक्ति है जो जाहिर है किसी न किसी परिवार से जुड़ा है और परिवार राष्ट्र से राष्ट्र विश्व से और विश्व पूरे ब्रम्हाण्ड से जुड़ा है । सभी एक दूसरे के सहयोग से अपना हित साधते हैं । इसमें संघर्ष नहीं है। भारतीय दर्शन की वसुदैव कुटुम्भ की अवधारण भी यही कहती है।
कौन है दीनदयाल उपाध्याय ?
प्रारम्भिक जीवन
25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में जन्में थे । जब से 7 साल के थे तो उनकी माता पिता का देहांत हो चुका था । वे अपने ममरे भाईयों के साथ पले बढ़े। उनके पिता का नाम भगवती प्रसार उपाध्याय और माता का नाम रामप्यारी । उनके पिता रेल्वे में नौकरी करते थे । 1937 में इंटरमिडियट की परीक्षा पास की 1939 में प्रथम श्रेणी में बी ए पास किया शासकीय नौकरी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। अतः वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुडे
1951 में जनसंघ के प्रथम महासचिव बने जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसार मुखर्जी ने उन्हें ये दायित्व सौंपा 1967 तक वे जनसंघ के महासचिव रहे। 1968 में अचानक उनका देहांत हो गया ।
यही जनसंघ आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी कहलाया।
जानिए! भारतीय जनता पार्टी का इतिहास
लेखक एवं पत्रकार
वे लेखक व पत्रकार भी थे 1940 में राष्ट्रधर्म नामक मासिक पत्रिका में वे लिखते थे बाद में आरएसएस से जुड़ने पर पंचजन्य और स्वदेश अखबार निकाला नाटक चंद्रगुप्त मौर्य और शंकराचार्य की जीवनी लिखी राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के संस्थापक केवी हेडगेवार की का मराठी से हिन्दी में अनुवाद किया।
उनकी प्रमुख रचनाएँ
उनकी प्रमुख साहित्यिक रचनाओं में सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, जगतगुरू शंकराचार्य, अखंड भारत क्यों है? राष्ट्र जीवन की समस्याएं, राष्ट्र चिंतन राष्ट्र जीवन की दिशा प्रमुख है ।
रहस्यमय मौत
उनकी मौत का रहस्य आज भी सुलझाया नहीं जा सका है। 10 फरवरी 1978 को जनसंघ के अध्यक्ष के तौर पर वे पटना जाने के लिए सियालकोट एक्सप्रेस में बैठे मगर रात 2 बजे यानि 11 फरवरी 1978 को जब ट्रेन मुगलसराय स्टेशन पहुँची तो वे गाड़ी में नहीं थे । उनकी लाश स्टेशन से कुछ दूरी पर मिली। आज यही स्टेशन का नाम दीनदयाल उपाध्याय है।
अंत्योदय उत्सव
उनके जन्म दिन 25 सिंतबर को अंत्योदय उत्सव मनाया जाता है। वे एक ऐसे राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने गरीबों और दलितों के हित के लिए काम किया ।
आज उनके नाम पर कई पुरस्कार पंचायत और शैक्षणिक स्तर पर दिए जाते हैं। साथ ही कुछ सरकार दीनदयान ग्रामीण कौशल विकास योजना भी है जो ग्रामीण गरीब युवाओं के उत्थान के लिए बनाए गए हैं।