वारंगल के राजा प्रताप रुद्रदेव के छोटे भाई अन्नमदेव को बस्तर में चालुक्यवंश के स्थापना का श्रेय जाता है। कहा जाता है कि अन्नमदेव चालुक्य वंश के राजा वीरभद्र के वंशज हैं। बस्तर के चालुक्यवंश के शासकों की वंशावली को लेकर कभी दीवान के रुप में पदस्थ दलगंजनसिंह की पाण्डुलिपि 'बस्तर राजवंशावली 1856' को लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बस्तर राजवंशावली के अनुसार "अन्नमदेव संवत 1370, बैसाख सुदी 8, बुधवार अर्थात 1313 ई. सन् में राजगद्दी पर बैठे, किन्तु परवर्ती विद्वान शील कहते हैं कि पैंतालीस वर्षों तक शासन करने के पश्चात् 77 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गारोहण हुआ। यदि हम पूर्ववर्ती तिथि को स्वीकार कर लें, तो अन्नमदेव प्रताप रुद्रदेव के समकालिक शासक बन जाते हैं, जो निःसंदेह स्वीकार्य नहीं हो सकता। प्रताप रुद्रदेव के अनुज अन्नमदेव ने वारंगल को छोड़कर बस्तर में अपने राज्य की स्थापना की। वारंगल का 1323 में पतन तथा बस्तर के छिंदक नागवंशी राजा की 1324 ई0 में मृत्यु की घटनाएं स्वतः स्पस्टीकरणात्मक हैं। बस्तर की वारंगल से निकटता, बस्तर में नाग शासन का पतन, की समकालिकता और बस्तर में चालुक्य शासन की स्थापना आदि से हम यह विश्वास करने के लिए बाध्य होते हैं कि अन्नमदेव को 1324 ई0 में बस्तर के चालुक्य नरेश के रुप में अभिषिक्त किया होगा। राजा अन्नमदेव ने अपने को प्रथम महाराजा के रुप में स्थापित किया।"
बस्तर के लोकगीतों में, शिलालेखों में, ताम्रपत्रों में बस्तर राजघराना के राजाओं को 'चालकीबंसराजा' के रुप में उल्लेख किया गया है, जो चालुक्य वंश का अपभ्रंस जान पड़ता है। बस्तर में 'चालकी' शब्द छोटे-टोटे परगनों के
मुखिया का परिचायक है तथा बस्तर के समस्त परगनों के जनजातीय संगठन के वाचक हैं। ऐसे अनेक प्रमाण हैं जिससे कहा जा सकता है कि अन्नमदेव व उनके परवर्ती राजाओं का वंश, चालुक्य था। बस्तर में राजा अन्नम देव को अपना राज्य स्थापित करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है। अन्नमदेव ने छिंदक नागवंश के अंतिम शासक, राजा हरिश्चंद्र को पराजित करके चक्रकूट में अपना राज्य स्थापित किया था। इसके पूर्व विजयपुर, सुकमा, हमीरगढ़, छिंदगढ़, कटेकल्याण पराजित करते हुए केशलूर, बारसूर के नाग राजाओं पर आक्रमण किया। नाग राजाओं के गढ़ों, जमींदारियों को अपने कब्जे में लेकर अपने सेना नायकों को जमींदार अथवा मांडलिक के रुप में सौंप दिया। चालुक्यवंश के राजा ने सर्वप्रथम मधोता को अपनी राजधानी बनाया। नागवंश के काल में यह स्थान राजधानी का उपनगर था।
अन्नमदेव ने अपने बस्तर विजय के दौरान छिंदक नागवंशीय राजाओं से 48 गढ़ों या किलों को जीता था, उनमें से प्रमुख रुप से चित्रकोट, धाराउर, मधोता, राजपुर, गढ़बोदरा, करेकोट, गढ़चंदेला, गढ़िया, मुण्डागढ़, हमीरगढ़, तीरथगढ़, कटेकल्याण, छिंदगढ़, गढ़मीरी, कुआकोंडा, माड़पाल (कोलेंग), केसरपाल, राजनगर, चीतापुर, किलेपाल, केशलूर, पाराकोट, रायकोट, दन्तेवाड़ा, बारसूर, भैरमगढ़, कुटरु, गंगालूर, कोतापल्ली, पामेड़, फोतकेल, भोपालपटनम, तारलागुड़ा, सुकमा, माकड़ी, उदयगढ़, चेरला, वंगरु, राकापल्ली, आलयाका, तारलागुड़ा, जगरगुंडा, उमरकोट, रायगढ़ा, पोड़ागुड़ा, शालिनीगढ़, चुरचुंगागढ़ कोटपाड़ हैं। इस तरह अपने समस्त बस्तर राज्य में बारह जमींदारियां, 48 गढ़, वारह मुकासा, 32 चालकी और 84 परगनों में बांट कर राज्य का विस्तार किया। कहा जाता है कि राजा अन्नमदेव ने बस्तर में चालुक्य वंश की स्थापना के बाद लगभग ग्यारह वर्षों तक सतत सैन्य अभियान चलाते हुए राज्य को संगठित किया। अन्नमदेव ने लगभग 45 वर्षों तक शासन किया। इनकी रानी का नाम था सोनकुंवर चंदेलिन। 77 वर्ष की आयु में सन 1369 को इनकी मृत्यु हो गई। इनके बाद इनका पुत्र हमीरदेव सिंहासन पर बैठा।
महाराजा अन्नमदेव Maharaja Ananam Dev
5/01/2024
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