बस्तर जिले में दशहरा के बाद जिस पर्व का बेसब्री से इंतज़ार होता है वह है –गोंचा Goncha Parv,
इस ब्लॉग के माध्यम से मै आज इसी गोंचा पर्व के बारे में विस्तार से चर्चा
करने जा रहा हूँ / बस्तर गोंचा पर्व के महत्त्व बहुयामी है / जिसमे
पौराणिक मान्यताओं के आलावा आम जनमानस के लिए सफल,एवम सुखी जीवन का
सन्देश के साथ जनकल्याण कारी प्रभाव दिखाई देता है
हालाँकि बस्तर दशहरा के बारे में मैंने विस्तार से अपने ब्लॉग में चर्चा की थी, बस्तर में मनाया जाने वाला दशहरा कई मायनों में ख़ास है- कृपया मेरे ब्लॉग पढिये “बस्तर दशहरा “/
/ गोंचा पर्व को मनाये जाने के कई कारण है -कहते है जब भगवान् जगग्न्नाथ नगर भ्रमण पर निकलते है तो गोंचा पर्व होता है / इस दौरान भगवान् को सलामी देने के लिए यहाँ बांस की बनी एक “बन्दुक” जिसे तुपकी कहते है – द्वारा सलामी दी जाती है / आइये बात करते है सिलसिले वार किस तरह इस पर्व का विधान किया जाता है / ज्ञात स्रोतों के आधार पर इस पर्व का सबसे पहला रस्म है चंदन जात्रा -
निशुल्क उपनयन संस्कार, वृद्ध जनों का सम्मान, तुपकी कारीगरों का सामान,
गोचा मनाने का कारण
/ गोंचा पर्व को मनाये जाने के कई कारण है -कहते है जब भगवान् जगग्न्नाथ नगर भ्रमण पर निकलते है तो गोंचा पर्व होता है / इस दौरान भगवान् को सलामी देने के लिए यहाँ बांस की बनी एक “बन्दुक” जिसे तुपकी कहते है – द्वारा सलामी दी जाती है / आइये बात करते है सिलसिले वार किस तरह इस पर्व का विधान किया जाता है / ज्ञात स्रोतों के आधार पर इस पर्व का सबसे पहला रस्म है चंदन जात्रा -
Press Conference by Goncha Samiti |
क्या है चंदन जात्रा :-
गोंचा पर्व (Goncha Parv )की शुरुवात में चन्दन जात्रा विधान के साथ शुरू हुई / इस विधान के अनुसार भगवान् 15 दिनों के लिए अनसर काल में होते है तथा अस्वस्थ होते है , इस दौरान भगवान का दर्शन करना वर्जित होता है / पूरे अनसर काल में भगवान के स्वस्थ लाभ के लिए 360 घर ब्राम्हण आरणक्य समाज द्वारा औषधि युक्त भोग अर्पण किया जाता है/ और भगवान् द्वारा लिया गया भोजन को प्रसाद के रूप में भक्तो की प्रदान किया जाता है / एसी मान्यता है कि इस प्रकार के भोजन को लेकर वर्ष भर स्वस्थ लाभ लिया जाता है /
Tupki on sale in the market |
भोजन औषधि युक्त होने की वजह से यह काफी गुणकारी होता है तथा लोग इसमें चमत्कारी प्रभाव महसूस करते है/
बहरहाल,भगवान् का अनसर खत्म होने के बाद गोंचा पर्व का अगला विधान शुरू होता है /
गोंचा पर्व के आयोजनों में है –
अनसर काल
नत्रोत्सव -
गोंचा रथ यात्रा-
हेरा पंचमी-
बहुडा गोंचा-
देश शयनी एकादशी -
तीन दिनों से जारी अन्नपूर्णा महालक्ष्मी की प्राण-प्रतिष्ठा भी संपन्न किया जाता है। इस मौके पर बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल होती हैं । फिर इसके बाद श्रीगोंचा रथयात्रा पूजा विधान के साथ भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा एवं बलभद्र स्वामी के विग्रहों को रथारूढ़ कर रथ परिक्रमा मार्ग से होते हुए गुड़िचा मंदिर सिरहासार भवन में स्थापित करते है। ।
रियासत कालीन श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में 06 खंडों में भगवान जगन्नाथ स्वामी, बलभद्र एवं देवी सुभद्रा के विग्रह सात जोड़े और केवल एक प्रतिमा जगन्नाथ भगवान के साथ कुल बाईस प्रतिमाओं का एक साथ पूजा अर्चना कर नेत्रोउत्सव पूजा की जाती है । वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हवन-पूजन पश्चात सभी प्रतिमाओं को नए वस्त्र और रजत आभूषण से पहनाए जाते है। । इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालओं ने दर्शन का पुण्य लाभ लेने के साथ ही प्रसाद ग्रहण करते हैं । भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा एवं बलभद्र स्वामी के बाईस प्रतिमाओं की तीन रथों में निकाली जाने वाली रथयात्रा देश-विदेश के किसी भी श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में नहीं होती है। श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में सात खंड हैं, जिसका रियासत कालीन नामकरण इस प्रकार है
जगन्नाथ जी की बड़े गुड़ी, मलकानाथ मंदिर, अमायत मंदिर, मरेठिया मंदिर, भरतदेव मंदिर तथा कालिकानाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है, श्रीराम मंदिर के साथ सात खंडों में स्थापित हैं।
श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर में आयोजित नेत्रोत्सव के शुभ अवसर पर 360 घर ब्राह्मण समाज के पदाधिकारी शामिल होते है।
611 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा की शुरुआत चन्दन जात्रा के साथ प्रतिवर्ष शुरू होती है / निशुल्क उपनयन संस्कार, वृद्ध जनों का सम्मान, तुपकी कारीगरों का सामान, छप्पन भोग एवं सास्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं
इस दौरान कुछ अन्य सामाजिक कार्य भी किए जाते हैं उनमें प्रमुख है:-
तीन दिनों से जारी अन्नपूर्णा महालक्ष्मी की प्राण-प्रतिष्ठा भी संपन्न किया जाता है। इस मौके पर बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल होती हैं । फिर इसके बाद श्रीगोंचा रथयात्रा पूजा विधान के साथ भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा एवं बलभद्र स्वामी के विग्रहों को रथारूढ़ कर रथ परिक्रमा मार्ग से होते हुए गुड़िचा मंदिर सिरहासार भवन में स्थापित करते है। ।
रियासत कालीन श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में 06 खंडों में भगवान जगन्नाथ स्वामी, बलभद्र एवं देवी सुभद्रा के विग्रह सात जोड़े और केवल एक प्रतिमा जगन्नाथ भगवान के साथ कुल बाईस प्रतिमाओं का एक साथ पूजा अर्चना कर नेत्रोउत्सव पूजा की जाती है । वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हवन-पूजन पश्चात सभी प्रतिमाओं को नए वस्त्र और रजत आभूषण से पहनाए जाते है। । इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालओं ने दर्शन का पुण्य लाभ लेने के साथ ही प्रसाद ग्रहण करते हैं । भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा एवं बलभद्र स्वामी के बाईस प्रतिमाओं की तीन रथों में निकाली जाने वाली रथयात्रा देश-विदेश के किसी भी श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में नहीं होती है। श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में सात खंड हैं, जिसका रियासत कालीन नामकरण इस प्रकार है
जगन्नाथ जी की बड़े गुड़ी, मलकानाथ मंदिर, अमायत मंदिर, मरेठिया मंदिर, भरतदेव मंदिर तथा कालिकानाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है, श्रीराम मंदिर के साथ सात खंडों में स्थापित हैं।
श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर में आयोजित नेत्रोत्सव के शुभ अवसर पर 360 घर ब्राह्मण समाज के पदाधिकारी शामिल होते है।
611 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा की शुरुआत चन्दन जात्रा के साथ प्रतिवर्ष शुरू होती है / निशुल्क उपनयन संस्कार, वृद्ध जनों का सम्मान, तुपकी कारीगरों का सामान, छप्पन भोग एवं सास्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं
56 food Items called Chhappan Bhog (Photo-Bholu Pandey) |
निशुल्क उपनयन संस्कार, वृद्ध जनों का सम्मान, तुपकी कारीगरों का सामान,
गोंचा महापर्व में तीन रथों की परिक्रमा होगी संचालन की जिम्मेदारी गोंचा दिवस के लिए आसना, करीत गाँव, जैबेल, बनियागांव, तथा तालुर के क्षेत्रीय समिति को दी गयी है वहीँ दूसरी तरफ दूसरी तरफ बहुडा गोंचा के दिन रथ वापसी संचालन का जिम्मा बिन्ता, जगदलपुर, गुनपुर, कुम्हली, कोंडागांव, तथा तितिर गाँव को दिया जाता है। /