दरभा पास एक गांव है चिगीतरई । यहां बाजार स्थल के समीप ही एक प्राचीन शिवमंदिर है जो अब जर्जर अवस्था में है। इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजाओं के द्वारा 11 वीं शताब्दी में निर्माण करवाया गया था। पुरातत्व की दृष्टिकोण चिंगीतरई का शिवमंदिर वास्तुकला का एक अनुपम धरोहर है तथा प्राचीन सभ्यता का अनुपम दस्तावेज माना गया है। समीप ही चंद्रगिरि, बीसपुर में पुराने राजाओं के राजमहल के अवशेष दिखाई पड़ते हैं। चिंगीतरई का यह ऐतिहासिक मंदिर बस्तर के अन्य मंदिरों की तुलना में बिल्कुल ही अलग है। भगवान शिव जिस जलहरी पर विराजे हैं वह जलहरी जमीन में धंस चुकी है केवल उपरी भाग दिखाई दे रहा है। जलहरी में स्थापित शिवलिंग सीधे न होकर पाषाण कलश के उपर स्थापित है जो आंशिक रुप से खंडित भी है। जलहरी के जमीन में धंस जाने के कारण तिरछा दिखाई देता है तथा शिवलिंग बायीं दिशा में झुका हुआ है। मंदिर के गर्भगृह की दीवारों में दरार दिखाई पड़ने लगा है जो कभी भी ध्वस्त हो सकता है। देवरली चिंगीतरई का एक अर्थ स्थानीय लोक भाषा के आधार पर देवी-देवताओं का मंदिर होता है। इस मंदिर का निर्माण भी खजुराहों के मंदिर के निर्माण काल के समकालीन माना जाता है। इसे उत्कल के कारीगरों ने निर्माण किया था। मंदिर का स्थापत्य बेसर शैली का है जो मिश्रित शैली मानी जाती है। यहां वर्ष में एक बार शिवरात्रि के दौरान मेला भरता है जहां अंचल के ग्रामीण बहुतायत में जुटते हैं।
खण्डित अवस्था में है यह 11 वीं सदी का मंदिर
मंदिर का अग्र भाग जिसे पाषाण मण्डप कहा जाता है, । यह मंदिर वर्तमान में खण्डित अवस्था में है। यह पत्थरों से निर्मित था किन्तु वर्तमान में पेड़ की जड़ों के कारण ध्वस्त हो चुका है। मण्डप में रखी गई अनेक प्रतिमाओं को एक पेड़ के नीचे मण्डप बनाकर रखा गया है किन्तु सुरक्षा की दृष्टिकोण से यह नाकाफी है। कुछ मूर्तियां खंडित अवस्था में है।
ऐसे पहुँचे चिंगी तरई ।
जगदलपुर से दरभा जाईए ! दरभा से 8 किलोमीटर की दूरी पर गुमड़ापाल से होकर चिंगीतरई नामक एक गांव पहुंचा जा सकता है। इसे देवरली चिंगीतरई के नाम से भी जाना जाता है। इसके आसपास साप्ताहिक बाजार लगता है।
समीप है तीरथगढ़ जलप्रपात
चिंगीतरई जाने के मार्ग पर एक बहुत ही प्रसिद्ध जलप्रपात पड़ता है जिसका नाम तीरथगढ़ जलप्रपात कहा जाता है। इस जलप्रपात को देखने देशी-विदेशी पर्यटक साल भर आते-जाते हैं।
रूद्रनारायण पानीग्राही अपनी किताब आओ बस्तर चलें में लिखते है कि इस जलप्रपात के नामकरण के पीछे एक जनश्रुति बस्तर में कही-सुनी जाती है जो इस तरह है लगभग एक हजार वर्ष पूर्व किसी राजपरिवार के दो युवाओं ने यहां अपना राज्य स्थापित किया। ये दोनों युवा आपस में सगे भाई हुआ करते थे। एक का नाम तीरथराज था तथा दूसरे का नाम चंद्रराय था। तीरथराय ने जिस स्थान पर राजमहल का निर्माण कराया था, वहां समीप ही एक सुंदर सा जलप्रपात का प्रवाह था। कालान्तर में तीरथराय के नाम से उस स्थान तथा जलप्रपात का नाम तीरथगढ़ जल प्रपात नामकरण हुआ। इस बात की पुष्टि के लिए जलप्रपात के आस-पास किसी महल के भग्नावशेष के बारे चर्चा की जाती है। दूसरा भाई चंद्रराय ने चंद्रगिरि-बीसपुर में अपना राजधानी स्थापित किया था। चंद्रराय ने वहां एक शिवमंदिर का निर्माण किया था, जो कालान्तर में चंद्रराय के कारण चंद्रगिरि देवरली मंदिर का नामकरण हुआ।
चिंगीतरई का शिवमंदिर
5/20/2025
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