ढोढरेपाल का शिवमंदिर
मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी का माना गया है तथा इसका निर्माण नागवंशीय राजाओं के द्वारा किया गया मालूम होता है। मंदिरों के निर्माण के दौरान भगवान की मूर्तियों के प्रदक्षिणा के लिये चारों तरफ प्रदक्षिणापथ का निर्माण किया गया था। इस मंदिर की निर्माण की शैली बेसर शैली पर आधारित है। मंदिर का उपरी भाग शंक्वाकार के साथ शिखर कलश के आकार का है। मंदिर की दीवारें सादगीपूर्ण है। मंदिर के दरवाजे ध्वस्त हो जाने के कारण कालान्तर में लोहे से निर्मित दरवाजा लगाया गया है। देवरली मंदिर प्रस्तर निर्मित स्मारक है। देवरली मंदिर ढोढरेपाल ऐतिहासिक धरोहर के रुप में चिन्हाकिंत है, इसके संरक्षण के लिये कार्रवाई प्रस्तावित है। इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर पर्यटकों के लिए श्मण्डवा जलप्रपातश् प्रवाहित होता है जो आकर्षक भी है।
कहाँ है यह मंदिर ? राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित जगदलपुर से गीदम मार्ग पर मावलीभाटा नामक गांव आता है। इस स्थान से बायीं ओर पांच किलोमीटर की दूरी पर तीन मंदिरों का समूह दिखाई पड़ता है। इस स्थान से ढोढरेपाल नामक गांव दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ढोढरेपाल में प्राचीन मंदिर एक मण्डप में स्थित है जहां तीन मंदिर समान दूरी पर स्थित था।
किन्तु एक मंदिर पूर्णतया ध्वस्त हो गया है तथा दो मंदिर आज भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में मौजूद है। ध्वस्त मंदिर के स्थान पर एक बड़ा सा पेड़ उग आया है जो मंदिर को ध्वस्त करने का कारण मालूम होता है। दो मंदिरों को देखने से लगता है कि तीनों मंदिर की उंचाई समान रुप से समान दूरी पर रही होगी। इसे देवरली मंदिर भी कहा जाता है।
शेष बचे मंदिर
तीन मंदिरों के समूह में शेष बचे मंदिरों में से एक मंदिर में शिवलिंग स्थापित है तथा ध्वस्त मंदिर में विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति स्थापित है। धार्मिक ग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा जी को वास्तुनिर्माण का देवता माना गया है। तीन मंदिरों में से दो मंदिरों के गर्भगृह में रखी मूर्तियां खंडित अवस्था में है। एक ही कतार में तीन मंदिरों में से एक भगवान शिव तथा ध्वस्त मंदिर में विश्वकर्मा की मूर्ति के अनुसार यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मध्य में स्थित मंदिर भगवान विष्णु का रहा होगा। बस्तर में विश्वकर्मा जी का यह एकमात्र मंदिर है। विश्वकर्मा जी की मूर्ति की उंचाई लगभग 22 इंच है तथा एक प्रस्तर खंड में उत्कीर्ण है।
कतार के प्रथम मंदिर में गर्भगृह में भगवान शिव की मूर्ति स्थापित है वहीं इस लिंग की जलहरी जमीन की सतह पर कुछ अंदर तक धंस गया है। केवल शिवलिंग ही स्पष्ट रुप से परिलक्षित हो रहा है। मध्य में स्थित मंदिर का गर्भगृह मूर्ति विहीन है, किन्तु कभी गर्भगृह में किसी मूर्ति के होने के निशान दिखाई देते हैं। तीन मंदिरों के समूह की पूजा करने वाले पुजारी तथा उपस्थित अन्य ग्रामीणों के अनुसार मध्य स्थित मंदिर में स्थानीय देवी की प्रतिमा थी, जो लगभग चार फीट की उंचाई तथा काले रंग की ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित थी।
रंग-रुप-आकार के अनुसार अनुमानतः वह लोकदेवी अथवा राज्य की देवी दन्तेश्वरी देवी का हो सकता है, किन्तु कालान्तर में वह मूर्ति भी चोरी चली गई। मंदिरों का समूह गांव से लगभग दो किलोमीटर की दूरी तथा सुनसान स्थान में होने से चोरी हो जाना स्वाभाविक था।
ढोढरेपाल का शिवमंदिर
5/30/2025
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