नागफनी मंदिर बिखरे गौरवशाली इतिहास के साक्षी
गीदम से बारसूर मार्ग पर स्थित नागफनी मंदिर एक ऐसा स्थल है जहाँ वर्तमान और अतीत की झलक एक साथ देखने को मिलती है। यह मंदिर भले ही प्राचीन नहीं मानी जाती लेकिन इसके आसपास बिखरे पत्थरों और मूर्तियों के अवशेष से हमें उस काल की विरासत का अनुमान लगता है। ये अवशेष यह बताते हैं कि यहां एक भव्य देवालय हुआ करता था। मंदिर परिसर में आज भी अनेक प्राचीन प्रतिमाएं सुरक्षित रखी गई हैं। इनमें सबसे मुख्य हैं फणीधारी नाग देवता की मूर्तियां। इन्हीं प्रतिमाओं की उपस्थिति के कारण इसे नागफनी मंदिर’ कहा जाता है।
नाग देवता और मंदिर का नाम
प्रमुख प्रतिमाएं और कला
मंदिर के गर्भगृह में सूर्य देव की अद्भुत प्रतिमा स्थापित है, जिसमें सात घोड़े जुते हुए हैं। इसके अलावा परिसर में चतुर्भुजी भगवान गणेश की प्राचीन प्रतिमा, पांच फनों वाले जुड़वां नाग, पदचिह्न, देवी की प्रतिमा, और नारी आकृतियों से अलंकृत पुराने स्तंभ देखने योग्य हैं।
परिसर के एक कोने में प्राचीन खंडित मूर्तियों का ढेर भी मौजूद है। इनमें सिरहीन कालभैरव की प्रतिमा विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसे उसकी मुण्डमाल से पहचाना जा सकता है। इसी प्रकार यहां नंदी की दो अलंकृत मूर्तियां भी हैं, जिनमें से एक बड़ी है और दूसरी छोटी। दोनों में ही सिर खंडित अवस्था में हैं। इससे यह आभास होता है कि इस स्थल पर कभी भगवान शंकर का भव्य मंदिर रहा होगा।
ऐतिहासिक साक्ष्य
मंदिर के आसपास का इतिहास छिंदक नागवंश काल की ओर संकेत करता है। समीप स्थित हिरमराज मंदिर और मार्ग के दोनों ओर फैले ध्वस्त मंदिरों के अवशेष यहां की समृद्ध कला और स्थापत्य का प्रमाण हैं। इसी क्षेत्र में कई खंडित मूर्तियां भी बिखरी पड़ी हैं, जो इस भूमि की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को गहराई से दर्शाती हैं।
संरक्षण की आवश्यकता
नागफनी मंदिर के प्रांगण में एक प्राचीन देवालय का टूटा प्रवेश द्वार रखा हुआ है, जिसके मध्य भाग में भगवान गणेश की प्रतिमा उकेरी गई है। ऐसी अनेक धरोहरें आज खुले आकाश के नीचे उपेक्षित अवस्था में पड़ी हैं। यह आवश्यक है कि सरकार और पुरातत्व विभाग इन मूर्तियों व अवशेषों को संरक्षित करे, ताकि आने वाली पीढ़ियां इस गौरवशाली इतिहास से जुड़ाव महसूस कर सकें।
नागफनी मंदिर बिखरे गौरवशाली इतिहास के साक्षी
9/06/2025
0